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			 बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
सन्तुलित आहार- सामान्य परिचय
ऐसा आहार जिसमें एक व्यक्ति की प्रतिदिन की शारीरिक जरूरतें पूरी करने की सामर्थ्य हो, सन्तुलित आहार कहलाता है। यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति का आहार तृप्तिदायक होने के साथ-साथ सन्तुलित भी हो। यदि आहार में ऊर्जा के तत्त्व तो पर्याप्त मात्रा में विद्यमान हैं, किन्तु उसमें निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्त्वों का अभाव है तो उस आहार को सन्तुलित नहीं कहा जा सकता। ऐसा आहार शरीर को क्रियाशील रखने में तो समर्थ होगा और उसके कारण व्यक्ति को कमजोरी व थकावट भी महसूस नहीं होगी, किन्तु निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्त्वों के अभाव के कारण व्यक्ति का शरीर स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट नहीं रहेगा। इसी प्रकार यदि भोजन में निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्त्व तो पर्याप्त मात्रा में हों, किन्तु उसमें ऊर्जा उत्पन्न करने वाले तत्त्वों का अभाव है तो व्यक्ति पूर्णरूप से क्रियाशील नहीं रह पाएगा। वह उदासी, कमजोरी तथा थकावट महसूस करेगा। कार्यरत रहने के कारण शरीर में उपस्थित ऊर्जा उत्पन्न करने वाले तत्त्वों के संग्रह में कमी हो जाएगी और उसके शरीर का भार भी प्रभावित होगा।
सन्तुलित आहार की परिभाषा और कारक
वह आहार जो शरीर की ऊर्जा की जरूरत, शरीर के निर्माणक तत्त्वों की जरूरत तथा नियामक व सुरक्षात्मक तत्त्वों की जरूरत को पूरा करता है, सन्तुलित आहार कहलाता है। अर्थात् सन्तुलित आहार वह है जो शरीर के सभी तत्त्वों की जरूरत को पूर्ण करता है। चूँकि प्रत्येक व्यक्ति की पोषक तत्त्वों की जरूरत भिन्न-भिन्न होती है अतः प्रत्येक व्यक्ति का सन्तुलित आहार भी भिन्न-भिन्न होता है।
किसी भी व्यक्ति के लिए सन्तुलित आहार विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक निम्नलिखित हैं-
1. स्वास्थ्य — व्यक्ति का स्वास्थ्य भी पोषक तत्त्वों की जरूरत को काफी हद तक प्रभावित करता है। अस्वस्थ होने की स्थिति में व्यक्ति की कार्यशीलता कम हो जाने के कारण उसे स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में कम ऊर्जा की जरूरत होती है। यदि दोनों व्यक्तियों की कार्यशीलता समान हो तो अस्वस्थ व्यक्ति को अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। अस्वस्थ व्यक्ति के शरीर में टूट-फूट अधिक होने के कारण निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्त्वों की भी जरूरत अधिक होती है, किन्तु उसकी पाचन क्रिया कमजोर हो जाने के कारण उसके भोजन के रूप में अन्तर होता है।
2. क्रियाशीलता-शारीरिक क्रियाकलापों के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है और अधिक शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को अधिक पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है। क्रियाशीलता अधिक होने के कारण शरीर में टूट-फूट भी अधिक होती है। इसलिए अधिक क्रियाशील व्यक्ति को निर्माणक तत्त्वों की जरूरत भी अपेक्षाकृत अधिक होती है।
3. विशेष शारीरिक अवस्था —कुछ विशेष शारीरिक अवस्थाओं; जैसे- गर्भावस्था, दुग्धपान अवस्था, ऑपरेशन या जल जाने के बाद की अवस्था तथा रोगोपचार होने के बाद स्वस्थ होने की अवस्थाओं में भी आहार की मात्रा का बहुत अधिक महत्त्व है। गर्भावस्था में पोषक तत्त्वों की जरूरत स्त्री के शरीर में भ्रूण का निर्माण तथा शारीरिक आकार व भार बढ़ जाने से अधिक होती है।
4. आयु — सन्तुलित आहार आयु से भी प्रभावित होता है। बच्चों को प्रौढ़ व्यक्तियों से अधिक भोज्य-तत्त्वों की जरूरत होती है। सन्तुलित आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्त्व, निर्माणक तत्त्व तथा सुरक्षात्मक तत्त्वों की आवश्यक मात्रा सम्मिलित होती है। बच्चों को ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्त्वों की अधिक जरूरत उनके नए ऊतकों में ऊर्जा संग्रह के लिए होती है। वृद्धि की सभी अवस्थाओं में निर्माणक तत्त्वों की जरूरत अधिक होती है। बाल्यावस्था तथा वृद्धावस्था में शरीर की संवेदनशीलता अधिक होने के कारण सुरक्षात्मक तत्त्वों की अधिक जरूरत होती है। वृद्धावस्था में शरीर के दुर्बल हो जाने के कारण ऊर्जा की कम जरूरत होती है।
5. जलवायु एवं मौसम — जलवायु तथा मौसम भी आहार की मात्रा एवं स्वरूप को प्रभावित करते हैं। ठण्डे देश के निवासी ऊर्जा का उपयोग शरीर का ताप बढ़ाने के लिए करते हैं तथा वे अधिक क्रियाशील भी होते हैं। अतः ठण्डी जलवायु प्रदेश के निवासियों को गर्म जलवायु प्रदेश के निवासियों की अपेक्षा आहार की अधिक मात्रा की जरूरत होती है, जिससे उन्हें अधिक ऊर्जा प्राप्त हो सके। सर्दियों में ऊष्मा के रूप में ऊर्जा लेने के कारण अधिक भोजन की आवश्यकता होती है।
6. लिंग — पुरुषों की पोषक जरूरत स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है, क्योंकि पुरुषों का आकार, भार व क्रियाशीलता प्रायः स्त्रियों से अधिक होती है। पुरुष के शरीर में टूट-फूट अधिक होने के कारण निर्माणक तत्त्वों की भी अधिक जरूरत होती हैं। लौह तत्त्व की जरूरत पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक होती है। गर्भावस्था व दुग्धपान अवस्था में स्त्रियों को अधिक पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है।
						
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